शहीद ए कर्बला नबी ﷺ के घरवालों को शाहिद करने वाले कौन थे!
इसमें कोई शक नहीं कि जिन लोगों ने कर्बला में नबी ﷺ के घरवालों का क़त्ल किया वह न तो यहूद व नसारा थे और न ही वह हुनूद व बौद्ध थे. बल्कि वह सारे के सारे मुसलमान थे। वह उसी नबी ﷺ का कलमा पढ़ने वाले थे जिनके जिगर के टिकड़ों को वह ज़िबह कर रहे थे। वह नमाज़ों में जिन अहले बैत पर दुरूद पढ़ते थे उन्हीं अहले बैत की गर्दनें काट रहे थे।
नबी ﷺ को दुनिया से रुख़्सत हुए अभी बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं गुज़रा था। क़ातिलीन में ज़्यादातर ऐसे थे जिनके बाप दादा ग़दीर के मैदान में मौजूद थे और अपने कानों से नबी ﷺ को यह फ़रमाते हुए सुन रहे थे कि
"मैं तुम्हारे दरमियान दो भारी चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूँ. एक क़ुरआन और दूसरी मेरे अहले बैत।
मैं तुम्हें अपनी अहले बैत के बारे में अल्लाह याद दिलाता हूँ"
{यानी मेरे अहले बैत के मुतअल्लिक़ अल्लाह का ख़ौफ़ रखना, मेरे बाद मेरे अहले बैत का ख़याल रखना, मेरे लिये उनसे मुहब्बत करना, उनके साथ हक़तल्फ़ी मत करना, उन पर ज़ुल्म मत करना, उन्हें अज़ियत मत पहुँचाना}
कर्बला के ज़ालिमों को अच्छे से पता था कि जिन लोगों का वह ख़ून बहा रहे हैं वह लोग कौन हैं, उनका मुक़ाम क्या है, नबी ﷺ से उनकी निसबत क्या है, उनकी क़ुरबत क्या है, नबी ﷺ के दिल में उनकी मुहब्बत क्या है, उनकी चाहत क्या है? उनको तकलीफ़ देना नबी ﷺ को तकलीफ़ देना है, उन पर ज़ुल्म करना नबी ﷺ पर ज़ुल्म करना है। यह जानते हुए कि यह सब नबी ﷺ के घर वाले हैं, नबी ﷺ के बच्चे हैं, उनके जिगर के टुकड़े हैं, फिर भी क़ातिलों के हाथ नहीं काँपे, ज़ालिमों के दिल नहीं लरज़े!
क़ातिल चाहे जो भी हो , वजह चाहे जो भी हो मगर क़ातिलों ने कोई आम क़त्ल का गुनाह नहीं किया था बल्कि उन्होंने नबी ﷺ के बच्चों को क़त्ल कर के नबी ﷺ को अज़ियत पहुँचाई थी और नबी ﷺ को अज़ियत पहुँचाना जहन्नम में ले जाने वाला गुनाह है।
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